आरती-भजन-मंत्र-चालीसा

Karwa chauth vrat and katha

Title of the document स्त्रियों को अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला करवा चौथ व्रत , पूजा विधि , कथाएँ तथा आरती

स्त्रियों को अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला करवा चौथ व्रत , पूजा विधि , कथाएँ तथा आरती

करवा चौथ की सरल विधि

1. सूर्योदय से पहले उठाकर व्रत करने का संकल्प ले, चाहे तो सूर्योदय से पहले सरगी ( सास द्वारा दिया गया, इसमे फल, मिठाइयां, पूरी, सेवई  व श्रृंगार की सामग्री होती है )  ग्रहण कर  व्रत आरम्भ करे। यह निर्जला व्रत है। 
2. शिव परिवार का पूजन करे।  गणेश जी को दूर्वा, पिले पुष्प, लड्डू चढ़ाये।  शिव जी को बेलपत्र और माता को लाल पुश्प चढ़ा कर श्रृंगार की वस्तुए अर्पित करे। करवा माता से व्रत का संकल्प लेते वक्त हाथ मे गेहू के 13 दाने रखे ( इस 13 दाने को फिर आँचल मे बांध ले इसे रात्री मे जब चंद्रमा को अर्ध्य दे तब उस जल से भरे करवा मे डाले ) । कृष्ण जी को मिठाई, पेड़ा का भोग लगाए।  अब भगवान के सामने अगरबत्ती और धुप दिखाए।
3. मिटटी के  दो करवा ले। पहले  करवे  पर रोली से स्वास्तिक बनाये। इस करवे  में दूध, जल मिलाकर रखे , इसका उपयोग चन्द्रमा को अर्ध देने में करे। 
4. दूसरे करवे १३ बिंदी रखे।  करवे के अंदर गेहू, ड्रायफ्रुट, बतासा आदि भरे। (कोई भी 5 प्रकार की सामग्री भरे) और ढक्कन के उप्पर बतासे, शक्कर या मिठाई रखे। 
5. इस दिन महिलाये सोलाह श्रृंगार जरूर करे। लाल, पीले, नारंगी, गुलाबी आदि रंग के वस्त्रों को शुभ माना जाता है। 
6. रात्रि में चंद्र को अर्ध देने से पूर्व पति की  दीर्घ आयु की कामना करते हुए एक चौकी मे लाल कपड़ा बिछाये, गंगाजल का छिड़काव करे, कलश मे दिया जलाकर  शिव परिवार व करवा माता की पूजा करे, और दोनों करवा को चौकी पर रखे। ( करवा माता की फोटो बाजार में मिल जाती है ) चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, मिठाई आदि अर्पित कर धूप दीप दिखाए  हाथों मे चावल, पुष्प लेकर  करवा चौथ की कथा पढ़े और आरती करे।
7. विशेष – चन्द्रमा को छलनी से देखे ( छलनी मे आटे का दिया रखे ) और अर्ध दे इसके बाद  पति की पूजा कर  उसे छलनी से देखे और उनके हाथों  से जल ग्रहण करे और पति का आशीर्वाद ले और मीठा खा कर व्रत तोड़े और सवपरिवार भोजन ग्रहण करे।  इस व्रत में अपने इच्छानुसार पूरी, खीर, सब्जी व अन्य पकवान खाया जाता है।
8. दूसरे दिन पूजा किया हुआ करवा व श्रृंगार की वस्तुए को अपनी सास या अन्य सुहागन महिलाओ को दे व आशीर्वाद ले। ( यदि करवा देने के लिए कोई बड़े आपके पास नहीं है तो करवा को किसी मंदिर मे दान कर सकते है। )

करवा चौथ व्रत कब मनाया जाता है।

यह व्रत कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है , खासतौर से विवाहित महिलाओ द्वारा यह व्रत किया जाता है। यह भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है।

करवा चौथ व्रत कैसे व क्यों  मनाया जाता है।

इस व्रत में  पत्नियां अपने पति की दीर्घ आयु, सफलता एवं समृद्धि के लिए पुरे दिन निर्जला व्रत रख कर रात्रि में चंद्र दर्शन के उपरांत चंद्र को अर्ध्य दे कर अपने पति के हाथो से पानी पी कर व्रत को तोड़ती है। यह पति-पत्नी के बिच के प्रेम को दर्शाने वाला बड़ी श्रद्धा व विश्वास से किये जाने वाला व्रत है। यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग ४ बजे से आरम्भ होकर रात में च्नद्र दर्शन के उपरान्त पूर्ण होता है। इस व्रत में सुहागिनों द्वारा सोलाह १६ श्रृंगार करने की महत्ता को बताया गया है , सुहागिनों द्वारा लाल , गुलाबी, नारंगी, पीला इन रंगो के वस्त्र को धारण करना शुभ मन जाता है।  हाथो में मेहंदी , आलता लगाकर परंपरागत विधि अनुसार व्रत धारण किया जाता है। इस दिन शृंगार की पस्तुओ को सुहागिनों मे वितरित करना बहुत शुभ माना जाता है। 

करवा चौथ व्रत पूजन-सामग्री

 
मिट्टी का  बना करवा, धातु (ताँवा, पीतल, स्टील) का करवा, खाँड़ के करवा, करवा मे डालने के लिए कुश ( एक तरह का घास जिसे कई पूजा मे अनामिका उंगली मे पहना जाता है ),  ताम्बे अथवा पीतल के कलश, कलश के लिए आम पत्ता, लकड़ी का पट्टा, स्वच्छ पीली मिट्टी प्रतिमाएँ बनाने के लिए अथवा करवा माता की फोटो ( बाजार में मिल जाती है ), चन्दन, रोली, कुमकुम, अक्षत ( पीला  चावल), ऐपन, दीपक, घी, रूई, बत्ती, कपूर, धूपबत्ती, दियासलाई, फूल-माला, पान, मौसमी फल , कच्चे सिंघाड़े ( खट्टे फल का उपयोग ना करे ), गेहू , बताशे, पेड़ा, अथवा मिष्ठान, गंगाजल तथा लाल वस्त्र बिछाने के लिए, सुहाग की वस्तुएँ इच्छानुसार, स्टील या अन्य धातु की छलनी, पूजा की थाली, आटे से बना हुआ एक दीपक।

करवा चौथ की व्रत एवं विधि:-

सुहागन महिलाओ द्वारा किये जाने वाला यह एक प्रमुख व्रत है, यह हर आयु की नव वधु से लेकर वृद्धा सुहागिनों द्वारा किया जाता है। इस व्रत में फलाहार नहीं किया जाता, निर्जला व्रत धारण किया जाता है। चीनी (खाड़) के करवा बाजारों में मिलते है। ये करवा किसी धातु के बने करवा के साथ बहुओ के मायके से ससुराल में फल , मिठाई,वस्त्र,एवं श्रृंगार के साथ भेजे जाते है तथा चतुर्थी में मनाये जाने के कारण  इस व्रत को करवा चौथ कहा जाता है। 
एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई तथा बहिन नित्य एक साथ प्रेम से भोजन किया करते थे। बहिन का विवाह होने के बाद भाई भोजन करते समय बहिन की याद करते और फिर अनमने से भोजन किया करते। जब कार्तिक से पहले बेटी विदा होकर घर आई तो घर में खुशी छा गई। अब बहिन-भाई फिर मिल-बैठकर भोजन करने लगे ।
 
कार्तिक कृष्ण पक्ष में करवा चौथ का व्रत किया जाता है। घर में लड़कों की बहुएँ, माँ, और बहिन सभी ने व्रत रखा था। शाम को सातों भाई भोजन करने बैठे तो उन्होनें बहिन को भोजन करने के लिये कहा। बहिन बोली- आज वह तो चन्द्रमा निकलने पर ही अर्घ्य देकर भोजन करेगी। भाई चुप होकर भोजन करने को तैयार हो गये। पर, सबसे छोटा भाई बहिन से बहुत प्यार करता था। उसने सोचा कि बहिन चन्द्र के निकलने तक कैसे भूखा रह सकेगी? उसने भाइयों से सलाह करके वृक्ष के सहारे सीढ़ी लगाई और चलनी के पीछे दीपक रख कर उसका प्रकाश चन्द्रमा बता दिया और भोली बहिन को अर्घ्य देने को कहा। भाइयों ने इस तरह बहिन से अर्घ्य दिलाकर भोजन करने को कहा ।
 
बहिन ने अपनी भाभियों से भी भोजन करने को कहा। किन्तु, उन्होनें भाइयों के द्वारा छल किया जाना बताकर ननद को भी भोजन करने को मना किया। फिर भी भोली बहिन ने भाइयों के बहकाने में आकर भोजन कर लिया। बहिन जब भोजन करने बैठी तो पहले ग्रास में बाल निकला, दूसरा कौर मुँह तक पहुँचने पर कुत्ते ने कान फट-फटाए । इस तरह दो अपशकुनों के बाद भी बहिन ने भाइयों के साथ कुछ भोजन कर लिया। लेकिन, तभी उसकी ससुराल से उसके पति की तबियत खराब होने की खबर आ गई। वह छोटे भाई को लेकर जब तक ससुराल पहुँची तब तक पति की मृत्यु हो चुकी थी। वहाँ उसकी मौत पर भारी कुहराम मचा हुआ था। माँ ने अपनी लड़की को ससुराल को भेजते समय समझाया था कि जब वह पति के गाँव पहुँचे तो घर जाते समय रास्ते में जो भी बड़े व्यक्ति और स्त्रियाँ मिलें उनके पाँव छूती जाना और आर्शीवाद प्राप्त करना । उसने ऐसा ही किया। जब वह पति के घर पहुँची तो वहाँ का हाल देखकर वह हतप्रभ हो गई। मुख से एक बार चीख निकली और फिर वह गुमसुम – सी एक ओर बैठ गई। उसकी सास ने उसे धरती पर पड़े पति के पास ला बिठाया। कुछ देर पीछे वह जोर-जोर से डकराने लगी और बोली- हाय, भूल से व्रत को भंग कर दिया। हे गणेश जी महाराज! आप मुझे क्षमा कर दो। मेरा अपराध आप ही क्षमा करोगे ! इस तरह वह कहती और जोर-जोर से रोती जाती थी।
 
तभी शंकर-पार्वती उधर से निकले। पार्वती जी ने हाल जानकर कहा- हे स्वामी! यह तो बहुत कम उम्र में ही विधवा हो रही है। यह अपना शेष जीवन कैसे काटेगी? प्रभु! आप कुछ कीजिये । शंकर भगवान बोले- प्रिये! आपका कहना सही है। किन्तु यह अपराध तो गणेजी जी के प्रति हुआ है, वही इसे सँभालेंगे। उन्होंने गणेश जी से उसे सुहागिन बने रहने के लिये कुछ करने को कहा। तब गणेश जी ने व्रत-खण्डन करने की उसकी भूल को क्षमा कर दिया और कहा- कि वह अब अगली करवा चौथ का व्रत करने में भूल न करें। तब उसका पति राम-राम कह कर उठ बैठा और बोला- मैं तो आज बहुत सोया हूँ। घर में आनन्द छा गया । बहू ने वर्ष के सभी चौथ माता के व्रत किये। सभी चौथ माताओं ने कार्तिक की सबसे बड़ी करवा चौथ का व्रत करके अखण्ड सौभाग्य पाने की बात कही। तब उसने कार्तिक आने पर करवा चौथ का व्रत विधिपूर्वक पूर्ण किया और अपने पति सहित सुख से रहने लगी। अब वह प्रति वर्ष करवा चौथ का व्रत हँसी-खुशी किया करती ।
 
हे, करवा चौथ माता! आपने जिस तरह साहूकार की बेटी को व्रत करने पर उसके पति को दीर्घायु प्रदान कर उसे सौभाग्य दिया, उसी तरह प्रसन्न होकर सभी व्रत करके इस कथा को पढ़ने-सुनने वाली देवियों को भी उत्तम और अखण्ड सौभाग्य प्रदान करना ।
प्राचीन समय में एक पतिव्रता स्त्री थी। उसका नाम करवा था। वह अपने पति की सेवा करने में कोई कमी नहीं छोड़ती थी। एक कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन उसका पति जब नदी में स्नान कर रहा था तो एक मगरमच्छ उसका पैर पकड़ कर नदी में ले जाने लगा। तब पति जोर-जोर से ‘करवा-करवा’ कहकर पत्नी से मदद के लिये पुकारने लगा। पत्नी ने यह सब देखा तो उसने अपनी साड़ी से एक सूत खींचकर मगर की ओर फेंक दिया। वह उस सूत के धागे से बँध कर पति को आगे नहीं ले जा सका। करवा ने फिर धर्मराज को पुकारा। उस पतिव्रता की पुकार पर धर्मराज वहाँ उपस्थित हुये और बोले-हे पतिव्रते! कहो, क्या चाहती हो ?
 
करवा बोली- महाराज आप धर्मराज कहाते हो और यहाँ अधर्म हो रहा है! देखो मेरा पति नदी स्नान कर रहा था तो इस मगरमच्छ ने उन्हें पकड़ लिया है। आप उसे मार कर मेरे पति को बचाएँ। यमराज बोले- हे पुत्री ! मगरमच्छ की आयु अभी मरने की नहीं हुई है। अभी इसकी आयु शेष है। इसलिये, मैं इसको मृत्यु नहीं दे सकता । करवा बोली- भगवन्! आप धर्मराज हैं, आपका धर्म दुष्टों को दण्ड देने का है फिर आप ऐसा क्यों नहीं करते? धर्मराज उसकी बात सुन कर मौन थे। तब करवा फिर बोली- तो अब मैं ही मगरमच्छ को नदी सहित नष्ट कर देती हूँ ।
 
यमराज बोले ऐसा मत करो पतिव्रते! नदी के नष्ट होने से तो सभी प्राणी दुखी हो – जायेंगे। ऐसा कहकर उन्होंने उसके पति को छुड़ा कर मगर को सीधा यमपुरी भेज दिया और कहा- देवी! आज कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। श्री गणेश जी की पूजा का दिन है। तुम्हारे करवा नाम से यह गणेश चतुर्थी प्रसिद्ध होगी। इस दिन जो सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिये चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य देकर पूजा करेंगी, उनकी इस व्रत के प्रभाव से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी। आज तुम्हारा पतिव्रत धर्म भी धन्य हुआ जो तुमने अपने पति के प्राण बचाए ।
 
उसी समय से यह ‘करवा चौथ व्रत’ पतिव्रताओं में प्रसिद्ध हुआ । हे चौथ माता! जैसा पुण्यफल पतिव्रता करवा को आपने अपनी कृपा से प्रदान किया, उसी तरह समस्त पतिव्रताओं को उनके ‘करवा चौथ व्रत’ का फल प्रदान करें उनके पतियों को दीर्घायु एंव सुख प्राप्त करायें ।
एक समय पाण्डु पुत्र अर्जुन नीलगिरि पर्वत पर तपस्या करने चले गये। उनके पीछे उनके भ्राता और द्रोपदी को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। साथ ही द्रोपदी भी अर्जुन के विषय में चिन्तित रहने लगी। एक दिन द्रोपदी ने भगवान् श्रीकृष्ण का स्मरण किया और उनके दर्शन देने पर उनको अपने संकटों के विषय में बताया। तब शोकाकुल सती द्रोपदी को धैर्य बँधाते हुये श्रीकृष्ण ने संकटों के निवारण हेतु एक प्राचीन कथा सुनाकर यह वृतानुष्ठान करने का परामर्श दिया ।
 
उन्होंने द्रोपदी को बताया कि एक बार महिलाओं को कष्टों से दुखी देखकर पार्वती जी ने भोलेनाथ से कोई ऐसा व्रत बताने को कहा जो सुहागिन स्त्रियों को हर प्रकार से सुखी बनाए, उनके पतियों को दीर्घायु प्रदान करें उन्हें सदा सुहागिन रखे। तब श्री शंकर जी ने उनको इस प्राचीन व्रत का वर्णन कर विवाहित स्त्रियों को हर प्रकार से सुख-सम्पन्न रहने एवं उनके पतियों को दीर्घायु प्राप्ति करने वाला बताया ।
उन्होंने कहा कि एक समय एक ब्राह्मण परिवार था जिसमें चार पुत्रों के अलावा एक कन्या गुणवती थी। परिवार के सभी व्यक्ति धार्मिक थे और वर्ष के सभी व्रत-पूजा किया करते थे। एक बार कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को माँ-बेटी तथा लड़कों की बहुओं ने करवा चौथ का व्रत रखा। सायंकाल तक व्रत-पूजा की समस्त तैयारियाँ हो गईं। चन्द्रोदय होने की प्रतीक्षा हो रही थी। घर में पूड़ी- पकवान बने थे। बेटी गुणवती को पकवानों की सुगन्ध ने उसकी भूख को जगा दिया उसे भूखी और व्याकुल देख उसके दयालु भाइयों ने छल से भोजन कराने की सोची। उन्होंने पीपल वृक्ष की आड़ में नकली चन्द्रमा दिखा कर बहिन गुणवती से अर्घ्य दिलाया और उसे भोजन करा दिया। भोजन करने वह बैठी ही थी कि उसकी ससुराल से अचानक पति के देहान्त की खबर आ गई। वह चीत्कार करती हुई अपनी ससुराल पहुँची तो वहाँ स्त्रियाँ तरह-तरह की बात करने लगीं। कोई बोली- व्रत खंडिनी आ गई है। कोई कहती अपने पति को ब्याह होते ही चुड़ैल खा गई। एक तो पति मरने का उसे गहरा सदमा लगा था। दूसरे, स्त्रियों की ऐसी तीखी बातों से उसका मन इतना विह्वल हो गया कि वह धरती पर पछाड़ खा-खा कर रोने लगी। हाय, मैं सचमुच ही राक्षसी हूँ। मैंने अपने पति को खाया है। सचमुच ही राक्षसी हूँ । मैने अपने पति को खाया हैं।
 
हाय, मैं इतनी भूखी थी कि मैनें भोजन नहीं, अपने पति को खाकर भूख बुझाई। इस 12 तरह विलाप करती, वह गुणवती अपने पति के साथ सती होने के लिये भागी-भागी श्मसान पहुँच गई और चिता में कूदना ही चाहती थी कि चौथ माता ने उसे रोक लिया और बोली- बेटी! तुम्हारी भूल नहीं हुई। तुम्हें भाइयों ने भुलावें में डाल दिया था। देख, तेरा पति अब जीवित हो उठा है। तुम घर जाकर उसकी प्रतीक्षा करो ।
 
गुणवती घर पहुँची तो उसका पति वहाँ बैठा मिला। घर में चारों ओर खुशियाँ छाई थीं। स्त्रियाँ कहने लगीं कि गुणवती का पतिव्रत धन्य और सत्य है। तब गुणवती सहित सब स्त्रियों ने अगली करवा चौथ आने पर व्रत विधिपूर्वक पारण करने का निश्चय किया। कार्तिक कृष्ण पक्ष में जब फिर करवा चौथ आई तो गुणवती ने सब भाँति विधिपूर्वक व्रत किया ।
 
श्रीकृष्ण जी बोले- हे द्रोपदी! तुम भी इस व्रत को करके अपने समस्त संकट दूर कर सकोगी। यह कार्तिक मारा अगला ही मास है। तुम करवा चौथ व्रत को विधिपूर्वक करोगी तो अपने को सभी संकटों से मुक्त पाओगी ।
एक वणिक परिवार में सात बेटों की बहुएँ थीं। छः बहुओं के पीहर वाले बहुत धनी थे और भरे-पूरे परिवार के थे। छोटी सातवीं बहू के परिवार में कोई भाई-बहिन और नहीं था तथा वह बहुत गरीब भी थे। इसी कारण छः बहुओं के पीहर से बहुत सा दान-दहेज आया था और उसके पश्चात भी उसके भाई जब-तब बहुत-सा सामान भी लाते रहते थे। इस तरह परिवार में उन छः बहुओं का बड़ा मान-सम्मान था। छोटी बहू घर का सारा काम-काज करती थी किन्तु सभी उसकी बुराई करते थे। प्यार उसके सास-ससुर भी नहीं करते थे और उसे खरी-खोटी सुनाते रहते थे ।
 
एक दिन छोटी बहू घर से अकेली निकल पड़ी और बियावान जंगल में जाकर जोर-जोर से रोने लगी। आज करवा चौथ व्रत का दिन था। उसकी जेठानियों के घर से करवा चौथ व्रत के लिये उनके भाई करवा और सौभाग्य की सामग्री की पिटारियाँ लेकर आये थे। छोटी बहू के घर में कौन था जो उसके लिये कुछ लाता? इसी से वह दुखी होकर जंगल में रोती हुई विचरने लगी ।
 
एक नाग उसके रोने को सुन रहा था। वह अपने बिल में से निकल कर उसके सामने आया और मनुष्यों की बोली में पूछने लगा-बहिन, तुम क्यों रो रही हो? आज तो करवा चौथ व्रत का दिन है। हँसी-खुशी व्रत करो। छोटी बहू पहले तो नाग को देखकर डर गई फिर साहस करके बोली- आज करवा चौथ व्रत का दिन है। सब बहुओं के भाई आज करवा और बहुत सा सामान लेकर आए हैं। मेरे पीहर में कोई नहीं है जो मेरे लिये करवा और सामान लाता। काश, मेरा भी कोई भाई होता तो मेरे लिये करवा लाता ।
 
यह सुन नाग को दया आई और बोला- बेटी! तुम अपने घर जाओं । शायद तुम्हारा कोई मुँह बोला भाई घर पर करवा लेकर आए। यह सुन छोटी बहू घर आकर सन्तोष से सब कामों में लग गई ।
 
कुछ देर बाद एक मनुष्य आया और छोटी बहू की सास से बोला- मैं तुम्हारी छोटी बहू का भाई हूँ। उसके बचपन में ही मैं बाहर जाकर रहने लगा था। अब घर आया हूँ। आज करवा-चौथ है। मैं उसके लिये करवा और सुहाग-पिटारी तथा कपड़ा लाया हूँ।
सास-ससुर और सभी बहुएँ उसके लाए हुये बहुमूल्य सामान को आँखे फाड़-फाड़ कर देखने लगीं। वाह, इतना सामान और इतना बेशकीमती ! छोटी बहू ने प्रसन्न होकर अपने भाई का सत्कार किया और सास-ससुर ने भी उसको प्रेम से भोजन आदि करा कर विश्राम करने को कहा ।
 
करवा चौथ का व्रत हँसी-खुशी हो गया। अगले दिन छोटी बहू का भाई उसकी सास से बोला- माता जी! मैं बहिन को कुछ दिन घर ले जाकर रखूँगा आप इसे मेरे साथ भेज दें। सास ने उसे प्रसन्नतापूर्वक उस भाई के साथ भेज दिया ।
 
वह मनुष्य रूप में नाग, नागों का राजा था। वह उसे ससुराल से अपने महल में लेकर आया ओर बोला- बहिन! तुम जितने दिन रह सको, यहाँ हँसी-खुशी रहो। अपनी इच्छानुसार खाओ-पीओ और सारे महल में मर्जी हो, वहाँ घूमो लेकिन, यह ध्यान रखना कि सामने वाली नाँद का ढक्कन उठाकर कुछ देखना नहीं । छोटी बहू भाई के महल में आराम से रह रही थी।
 
एक दिन जब भाई कहीं गया था तो उसने नाँद का ढक्कन उठाकर देखने का विचार किया। उसने सूने महल में नाँद के ढक्कन को उठाया । तो उसे उसमें नाग के बच्चे इधर-उधर घूमते मिले। जब उसे किसी के आने का आभास हुआ तो उसने जल्दी से उस ढक्कन को रख दिया। जल्दी-जल्दी में ढक्कन रखने से एक नाग के बच्चे की पूँछ पर ढक्कन पड़ गया और वह उससे कट गई। शाम को नाग भैया आया। बहिन ने सच बात कहकर अपनी गलती मानते हुये भाई से क्षमा माँगी। नाग भैया ने उसे क्षमा कर दिया।
 
वह पूँछ कटा नाग बण्डा-बण्डा नाम से बड़ा चिढ़ता था। उसने एक दिन नागिन माँ से पूछा- उसकी पूँछ कैसे कटी ? जब उसे मालूम हुआ की उसकी बहिन ने नाँद का ढक्कन जल्दी-जल्दी में रख दिया था सो उसकी पूँछ कट गई। बण्डा बोला- मैं उससे बदला लूँगा। मैं कुछ नहीं जानता। माँ ने उसे समझाया कि यह गलती से हुआ था, जानकर तो नहीं किया था बण्डा बोला- यह मैं नहीं जानता। मैं उससे जरूर बदला लूँगा ।
 
एक दिन बण्डा अपनी बहिन के घर चुपचाप पहुँच कर छिप गया। वह अवसर की ताक में था कि उसे काट कर घायल करे। कमरे में जहाँ बण्डा छिपा था और छोटी बहू बैठी थी, वहीं उसकी सास आई और बातों ही बातों में उसने बहू से पूछा- बहू, तुझे सब से प्यारा भाई कौन लगता है? बहू ने तुरन्त प्रसन्न होकर कहा- माता जी! मुझे तो बण्डा भइया सब से प्यारा लगता है। बण्डा यह बात सुन रहा था।
 
वह सोचने लगा- मुझे धिक्कार है जो मैं अपनी बहिन को जान-बूझकर काटने आ गया हूँ। वह वहाँ से चुपचाप लोटने लगा कि तभी उसे याद आया की कल करवा चौथ का व्रत होने वाला है। उसने वहाँ से लौटकर करवा और अन्य ढेर सारा सामान इकट्ठा किया और अपनी. बहिन के घर लेकर पहुँच गया । बहिन और उसकी सास ने उसका बहुत प्यार सें स्वागत-सत्कार किया ।
 
जब वह अपने घर पहुँचा तो माँ ने पूछा- क्या तुमने अपनी बहिन से बदला ले लिया? बण्डा बोला- माँ! वह तो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है। ऐसी बहिन से कोई बदला लिया जाता है क्या ?
 
अब तो बण्डा अपनी बहिन के घर हर करवा चौथ पर करवा और अन्य सामान लेकर जाने लगा। सब लोग भाई-बहिन के प्यार से बहुत खुश थे
 
हे करवा चौथ माता! तुमने छोटी बहू के जैसे दुख के दिन फेरे उसी तरह अपने अन्य व्रत करने वाली माता-बहिनों को दुखों से दूर रखना और सुहागिनों को उनका सुहाग अक्षय कर उनको सब प्रकार से सन्तानों सहित सुख-सम्पति प्रदान करना ।
 

 

करवा चौथ माता की आरती

 
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया.. ओम जय करवा मैया।
सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।
यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी.. ओम जय करवा मैया।
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।
दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती.. ओम जय करवा मैया।
होए सुहागिन नारी, सुख संपत्ति पावे।
गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे.. ओम जय करवा मैया।
करवा मैया की आरती, व्रत कर जो गावे।
व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे.. ओम जय करवा मैया।
 

गणेश जी की आरती 

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
मस्तक  सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
सूर श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
|| गणपति बाप्पा मौर्या ||
 
 
 

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