Maa Kaali Chalisa | माँ काली चालीसा Maa Kaali Chalisa
माँ काली चालीसा
दोहा :
जय जय सीताराम के,
मध्यवासिनी अम्ब ।
देहु दर्श जगदम्ब अब,
करो न मातु विलम्ब ।।
॥ चौपाई ॥
जय काली कंकाल मालिनी।
जय मंगला महा कपालिनी ।।
रक्तबीज बधकारिणि माता।
सदा भक्त जन की सुखदाता ।।
शिरो मालिका भूषित अंगे।
जय काली जय मध्य मतंगे ।।
हर हृदयारविन्द सुविलासिनि ।
जय जगदम्बा सकल दुःखनाशिनि ।।
ह्रीं काली श्रीं महाकराली।
क्रीं कल्याणी दक्षिणकाली ।।
जय कलावती जय विद्यावती।
जय तारा सुन्दरी महामति ।।
देहु सुबुद्धि सब संकट ।
होहु भक्त के आगे परगट ।।
जय ॐ कारे जय हुंकारे।
महाशक्ति जय के अपरम्पारे ।।
कमला कलियुग दर्प विनाशिनी ।
सदा भक्त जन के भयनाशिनी ।।
अब जगदम्ब न देर लगावहु ।
दुख दरिद्रता मोर हटावहु ।।
जयति कराल कालिका माता।
कालानल समान द्युतिगाता ।।
जयशंकरी सुरेशि सनातनि।
कोटि सिद्धि कवि मातु पुरातनि ।।
कपर्दिनी कलि कल्प बिमोचनि।
जय विकसित नव नलिन बिलोचनि ।।
आनन्द करणि आनन्द निधाना।
देहमातु मोहि निर्मल ज्ञाना ।।
करुणामृत सागर कृपामयी।
होहु दुष्ट जन पर अब निर्दयी ।।
सकल जीव तोहि परम पियारा।
सकल विश्व तोरे आधारा ।।
प्रलय काल में नर्तन कारिणि।
जय जननी सब जग की पालनि ।।
महोदरी महेश्वरी माया ।
हिम गिरि सुता विश्व की छाया ।।
स्वछन्द रद मारद धुनि माही।
गर्जत तुम्ही और कोउ नाही।।
स्फुरति मणि गणाकार प्रताने ।
तारागण तू ब्योम विताने ।।
श्री धारे सन्तन हितकारिणी।
अग्नि पाणि अति दुष्ट विदारिणी ।।
धूम्र विलोचनि प्राण विमोचनि ।
शुम्भ निशुम्भ नथनि वरलोचनि ।।
सहस भुजी सरोरूह मालिनी।
चामुण्डे मरघट की वासिनी ।।
खप्पर मध्य सुशोणित साजी।
मारेहु मां महिषासुर पाजी।।
अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका।
सब एके तुम आदि कालिका।।
अजा एकरूपा बहुरूपा।
अकथ चरित्र तव शक्ति अनूपा।।
कलकत्ता के दक्षिण द्वारे।
मूरति तोर महेश अपारे ।।
कादम्बरी पानरत श्यामा ।
जय मातंगी काम के धामा।।
कमलासन वासिनी कमलायनि ।
जय श्यामा जय जय श्यामायनि ।।
मातंगी जय जयति प्रकृति है।
जयति भक्ति उर कुमति सुमति है।।
कोटि ब्रह्म शिव विष्णु कामदा।
जयति अहिंसा धर्म जन्मदा ।।
जल थल नभ मण्डल में व्यापिनि।
सौदामिनि मध्य अलापिनि ।।
झननन तच्छु मरिरिन नादिनि ।
जय सरस्वती वीणा वादिनि ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
कलित कण्ड शोभित नरमुण्डा ।।
जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता ।
कामाख्या और काली माता ।।
हिंगलाज विन्ध्याचल वासिनि ।
अट्ठहासिनी अरु अघन नासिनि ।।
कितनी स्तुति करूँ अखण्डे ।
तू ब्रह्माण्डे शक्ति जितचण्डे ।।
करहु कृपा सबपे जगदम्बा ।
रहहिं निशंक तोर अवलम्बा ।।
चतुर्भुजी काली तुम श्यामा।
रूप तुम्हार महा अभिरामा ।।
खड्ग और खप्पर कर सोहत।
सुर नर मुनि सबको मन मोहत ।।
तुम्हरी कृपा पावे जो कोई ।
रोग शोक नहिं ताकहँ होई ।।
जो यह पाठ करे चालीसा ।
तापर कृपा करहि गौरीसा ।।
॥ दोहा ॥
जय कपालिनी जय शिवा
जय जय जय जगदम्ब ।
सदा भक्त जन केरि
दुःख हरहु मातु अवलम्ब ।।