आरती-भजन-मंत्र-चालीसा

Shri Chitragupt Ji Ki Aarti 

Title of the document ॐ श्री चित्रगुप्त जी की आरती ॐ

जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे

Jai Chitragupt Hare, Swami Jai Chitragupt Hare

 

श्री चित्रगुप्त जी की आरती

 
ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित फल को पूर्ण करे।। ॐ जय…. 
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।
भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी।। ॐ जय…. 
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरति, पीताम्बर साजै।
मातु इरावती दक्षिण, वाम अंग राजै। ॐ जय…. 
कष्ट निवारण दुष्ट संहारण, प्रभु अंतर्यामी। 
 सृष्टि संहारण जन दुःखहारण, प्रकट भये स्वामी।। ॐ जय…. 
कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहैं।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै ।। ॐ जय…. 
सिंहासन का कार्य संभाला, ब्रह्मा हर्षाये।
तैंतीस कोटि देवता, चरणन में धाये।। ॐ जय…. 
नृपति सौदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
 वेगि विलम्ब न लायो, इच्छित फल दीन्हा ।। ॐ जय….
दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता। 
 जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता । ॐ जय….
 बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
 तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ।। ॐ जय… 
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावे।
चौरासी से निश्चित छूटै, इच्छित फल पावें।। ॐ जय….
 न्यायधीश बैकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
हम हैं शरण तिहारे, आस न दूजी करते।।ॐ जय….
 

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