आरती-भजन-मंत्र-चालीसा

Shri Chitragupt Ji Ki Chalisa 

Title of the document ॐ चालीसा ॐ

चित्रगुप्त चालीसा

Chitragupt Chalisa

 

श्री चित्रगुप्त चालीसा

 

।। दोहा।।

मंगलमय मंगल करन,
सुन्दर बंदन विशाल ।
 सोहे कर में लेखनी,
जय जय दीन दयाल ।।
 

।। चौपाई।।

चित्रगुप्त बल बुद्धि उजागर,
 त्रिकालज्ञ विद्या के सागर ।
 शोभा दक्षिण पति जग वन्दित,
 हंसमुख प्रिय सब देव आनन्दित ।।
 शान्त मधुर तनु सुन्दर रूपा,
 देत न्याय सम दृष्टि अनूपा ।
क्रीट मुकुट कुण्डल द्युति राजे,
 दहिने हाथ लेखनी विराजे ।।
अंग अंग रिद्धि सिद्धि विराजे,
जाप यज्ञ सो कारज साजे ।
 भाव सहित जो तुम कहुं ध्यावे,
कोटि जन्म के पाप नसावे ।। 
साधन बिन सब ज्ञान अधूरा,
 कर्म जोग ते होवे पूरा ।
तिन्ह मह प्रथम रेख तुम पाई,
 सब कह महिमा प्रकट जनाई ।।
 न्याय दया के अद्भुत जोगी,
 सुख पावे सब योगी भोगी ।
जो जो शरण तुम्हारी आवे,
 बुद्धिबल, मनबल, तनबल पावे ।। 
तुम ब्रह्मा के मानस पूता,
 सेवा में पार्षद जम दूता ।
सकल जीव कर्मन में बांधे,
 तिनको नाव तुम्हारे कांधे ।।
 तुम तटस्थ सब ही की सेवा,
 सब समान मानस अरू देवा ।
निर्विघ्न प्रतिनिधि ब्रह्मा के,
 पालक सत्य न्याय वसुधा के ।।
 तुम्हारी महिमा पार न पावें,
 जो शारद शत मुख गुण गावें ।
चार वेद के रक्षक त्राता,
मर्यादा के जीवन दाता ।।
 ब्रह्मा रचेऊ सकल संसारा,
चित्त तत्व सब ही कहँ धारा ।
 तिन चित्तन में वास तुम्हारा,
यह विधि तुम व्यापेऊ संसारा ।। 
 चित्त अदृश्य रहे जग माही,
 भौतिक दरस तुम्हारो नाही ।
जो चित्तन की सीमा माने,
 ते जोगी तुमको पहचाने ।। 
हमहिं अगम अति दरस तुम्हारा,
सुगम करहुं निज दया अधारा ।
अब प्रभु कृपा करहुँ एहि भांति,
 शुभ लेखनी चले दिन राती ।। 
गुप्त चित्र अहं प्रेरण कीजै,
 चित्रगुप्त पद सफल करीजै ।
आए हम सब शरण तिहारी,
 सफल करहुं साधना हमारी ।। 
जेहि जेहि जोनि भ्रमें जड़ जीवा,
 सुमिरै तहां तुम्हारी सीवा ।
जीवन पाप पुण्य ते ऊँचो,
 पूजन उपासना सो सींचो ।।
 जो जो कृपा तुम्हारी पावें,
 सो साधन को सफल बनावें ।
सुमिरन करें सुरूचि बड़भागी,
 लहै मनोरथ गृही विरागी ।।
 अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता,
 पावें कर्मजोग ते ताता।
अंधकार ते आन बचाओं,
 मारग विधिवत देव बताओं ।।
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा,
 धर्मराज के धर्म सहूता ।
 मसि लेखन के गौरव दाता,
न्याय सत्य के पूरण ज्ञाता ।।
 जो जो शरण तिहारी आवे,
 दिव्य भाव चित्त में उपजावे ।
 मन बुद्धि चित्त अहमति के देवा,
 आरत हरहु देउ जन सेवा ।।
 न्याय तत्व के पूरण ज्ञाता,
 शुभ अरू अशुभ कर्म फल दाता ।
धर्म कर्म के मर्मक ज्ञाता,
 प्रथम न्याय पद दीन्ह विधाता ।।
 हम सब शरण तिहार आये,
 मोह अरथ जग में भरमाये।
 अब वरदान देहु एहि भाँति,
 न्याय धर्म के बने संहाति ।।
 दिव्य भाव चित्त में उपजावे,
 देश धर्म की सेवा पावे ।।
कर्मजोग ते जग जस पावें,
 तुम्हरी महिमा प्रकट जनावें ।। 
 

।। दोहा।।

यह चालीसा भक्तियुक्त,
पाठ करै जो कोय।
तापर कृपा प्रसन्नता,
चित्रगप्त की होय ।।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top